हमेशा सुख के लिए प्रयासरत रहने वाला मनुष्य समाज किसी न किसी तरह की समस्याओं से घिरा रहता है। ये समस्याएं तो मनुष्य के द्वारा ही बनाई गई हैं। कैसे और क्यों बनाई गई हैं? इसका कारण है अज्ञानता। समस्याएं तभी उभरती हैं, जब हमारी चेतना पर अज्ञानता छाई रहती है। आत्मज्ञान न होने के कारण ही कोई भी हर क्षेत्र में अज्ञानता का परिचय देता है। आत्मज्ञान कब नहीं होता, जब अपनी वैदिक संस्कृति से विमुख हो जाते हैं। भारत की वेद-विद्या आत्मज्ञान कराती है, जब इस वैदिकता में रहते हैं, आत्मज्ञान हो जाता है तो सर्वज्ञता आती है, सवसमर्थता आती है। समस्याएं न हों, इसके लिए आवश्यक है कि चेतना में ज्ञान हो और ज्ञान की जागृति के लिए आवश्यक है कि भारतीय अपनी वैदिक संस्कृति में रहें। अपनी वैदिक संस्कृति के आधार पर ही भारत सारे विश्व-परिवार को मार्ग दिखा सकता है। भारतीयों की चेतना में सनातन रूप में परंपरा से वैदिक ज्ञान भरा पड़ा है। ज्ञान का बीज तो आज भी हमारे पास है, क्योंकि अपनी भारतीय वेद-विद्या सनातन है। अपनी भारतीय वैदिक परंपरा की क्या विशेषता है? अपने यहां भारत के गांव-गांव में जो अपने इष्ट की अराधना, त्रिकाल संध्यावंदन, पूजा-अर्चना, भक्ति-कीर्तन, वंदना के सिद्धांत हैं, देवी-देवताओं की शक्ति जागृत कर उनकी अनुकंपा बनाए रखने के जो विधान हैं, वे ‘हेयम् दुःखम् अनागतम्’ के ही सिद्धांत हैं। ये सभी वेद स्वरूप हैं। प्रत्येक भारतीय को अपने-अपने परिवार और सारे समाज, सारे देश, सारे विश्व की सुख-शांति और समृद्धि के लिए इस अनमोल परंपरा को अपनाए रखना चाहिए। प्राकृतिक नियमों के पोषक वैदिक धर्म पर चलकर व्यक्ति की चेतना में निर्मलता, सात्विकता का वह भाव जागृत रहता है, जिसमें कोई भी कार्य सर्वकल्याणकारी रूप में निष्पादित होते हैं। अपनी इन दैवीय शक्तियों को जगाने के विधानों का ज्ञाता होने के कारण भारत तो हमेशा से ही विकसित राष्ट्र रहा है। भारतीय वैदिक संस्कृति की यही विशेषता है। भारतीय लोकजीवन में रची-बसी धर्म की यह वैज्ञानिक परिभाषा और आस्था ही उसे सारे विश्व में श्रेष्ठ सिद्ध करती है। भारत के यहां का बच्चा-बच्चा ज्ञान का दिव्य प्रकाश लेकर पैदा हुआ है। भारत के गांव-गांव के बच्चे-बूढ़ों के लोकजीवन में सनातन रूप में धर्मपरायण रहते हुए इस ज्ञान को जगाए रखने की परंपरा चली आ रही है। भारत के गांव-गांव में मनाए जाने वाले पर्व-त्योहारों में स्नान, ध्यान, पूजा-पाठ, दैवी अराधना, भजन, उपवास, त्रिकाल संध्यावंदन, मंत्र जाप, योग, वेद पाठ, सहस्रनाम पाठ, ज्योतिष के अनुसार सामूहिक यज्ञ, ग्रहशांति, वास्तुशांति अनुष्ठान के द्वारा इस ज्ञान को जागृत होते हुए देखा जा सकता है। भारत के ही पास यह सामर्थ्य है कि वह सारे विश्व को यह ज्ञान दे सकता है। वास्तविक ज्ञान तो चेतना की जागृति से ही आता है। भावातीत ध्यान योग की सर्वाधिक सुगम शैली है।